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Topics Covered
Rahat Indori Shayari in Hindi Image
Rahat Indori Shayari in Hindi Image
Rahat Indori Shayari in Hindi
मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिया,
इक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए।
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
राहत इंदौरी शायरी इन हिंदी गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं में आ गया हु बता इंतज़ाम क्या क्या हैं फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं||
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे,
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते!!
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए
हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते,
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते।
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
उसकी याद आई हैं साँसों ज़रा धीरे चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
मुझसे पहले वो किसी और की थी, मगर कुछ शायराना चाहिये था,
चलो माना ये छोटी बात है, पर तुम्हें सब कुछ बताना चाहिये था|
फूंक डालुंगा मैं किसी रोज दिल की दुनिया
ये तेरा खत तो नहीं है जो जला ना सकूं
किसने दस्तक दी ये दिल पर
कौन है आप तो अंदर है, ये बाहर कौन है.
यहां दरिया पे पाबंदी नहीं है,
मगर पहरे लबों पे लग रहे हैं.
सरहदों पर तनाव है क्या
जरा पता तो करो चुनाव हैं क्या
मैंने अपनी आँखों से लहू छलका दिया
एक समन्दर कह रहा है मुझे पानी चाहिए
इरादा था कि में कुछ देर तुफानो का मजा लेता
मगर बेचारे दरिया को उतर जाने की जल्दी थी
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे
मेरी ख्वाहिश है कि आंगन में न दीवार उठे
मेरे भाई, मेरे हिस्से की जमीं तू रख ले
कभी दिमाग, कभी दिल, कभी नजर में रहो
ये सब तुम्हारे घर हैं, किसी भी घर में रहो
अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया,
मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
ङा राहत इंदौरी शायरी इन उर्दू इस प्रकार है
राहत इन्दौरी की शायरी इस प्रकार है :
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें|| C
हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं||
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं
मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए
e इस प्रकार है : मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
नए किरदार आते जा रहे हैं मगर नाटक पुराना चल रहा है
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए
मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
सूरज सितारे चाँद मिरे सात में रहे
जब तक तुम्हारे हात मिरे हात में रहे
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए
अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत कर के
जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते
रेंगने की भी इजाज़त नहीं हम को वर्ना
हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते
मुझ को रोने का सलीक़ा भी नहीं है शायद
लोग हँसते हैं मुझे देख के आते जाते
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
hath KHali hain tere shahr se jate jate
jaan hoti to meri jaan luTate jate
ab to har hath ka patthar hamein pahchanta hai
umr guzri hai tere shahr mein aate jate
ab ke mayus hua yaron ko ruKHsat kar ke
ja rahe the to koi zaKHm lagate jate
rengne ki bhi ijazat nahin hum ko warna
hum jidhar jate nae phul khilate jate
main to jalte hue sahraon ka ek patthar tha
tum to dariya the meri pyas bujhate jate
mujh ko rone ka saliqa bhi nahin hai shayad
log hanste hain mujhe dekh ke aate jate
hum se pahle bhi musafir kai guzre honge
kam se kam rah ke patthar to haTate jate
अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ
फूँक डालूँगा किसी रोज ये दिल की दुनिया
ये तेरा खत तो नहीं है कि जला भी न सकूँ
मेरी गैरत भी कोई शय है कि महफ़िल में मुझे
उसने इस तरह बुलाया है कि जा भी न सकूँ
इक न इक रोज कहीं ढ़ूँढ़ ही लूँगा तुझको
ठोकरें ज़हर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूँ
फल तो सब मेरे दरख्तों के पके हैं लेकिन
इतनी कमजोर हैं शाखें कि हिला भी न सकूँ
मैंने माना कि बहुत सख्त है ग़ालिब कि ज़मीन
क्या मेरे शेर है ऐसे कि सुना भी न सकूं
ajnabi KHwahishen sine mein daba bhi na sakun
aise ziddi hain parinde ki uDa bhi na sakun
phunk Dalunga kisi roz main dil ki duniya
ye tera KHat to nahin hai ki jila bhi na sakun
meri ghairat bhi koi shai hai ki mahfil mein mujhe
us ne is tarah bulaya hai ki ja bhi na sakun
phal to sab mere daraKHton ke pake hain lekin
itni kamzor hain shaKHen ki hila bhi na sakun
ek na ek roz kahin DhunD hi lunga tujh ko
Thokaren zahr nahin hain ki main kha bhi na sakun
सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं आँखों में पानी चाहिए,
ऐ ख़ुदा दुश्मन भी मुझको ख़ानदानी चाहिए !
शहर की सारी अलिफ़-लैलाएँ बूढ़ी हो चुकीं,
शाहज़ादे को कोई ताज़ा कहानी चाहिए !
मैंने ऐ सूरज तुझे पूजा नहीं समझा तो है,
मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चाहिए !
मेरी क़ीमत कौन दे सकता है इस बाज़ार में,
तुम ज़ुलेख़ा हो तुम्हें क़ीमत लगानी चाहिए !
ज़िंदगी है एक सफ़र और ज़िंदगी की राह में,
ज़िंदगी भी आए तो ठोकर लगानी चाहिए !
मैंने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया,
एक समुंदर कह रहा था मुझको पानी चाहि
sirf KHanjar hi nahin aankhon mein pani chahiye
ai KHuda dushman bhi mujh ko KHandani chahiye
shahr ki sari alif-lailaen buDhi ho chukin
shahzade ko koi taza kahani chahiye
main ne ai suraj tujhe puja nahin samjha to hai
mere hisse mein bhi thoDi dhup aani chahiye
meri qimat kaun de sakta hai is bazar mein
tum zuleKHa ho tumhein qimat lagani chahiye
zindagi hai ek safar aur zindagi ki rah mein
zindagi bhi aae to Thokar lagani chahiye
main ne apni KHushk aankhon se lahu chhalka diya
ek samundar kah raha tha mujh ko pani chahiye
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा,
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा !
मैं जानता था कि ज़हरीला साँप बन बन कर,
तिरा ख़ुलूस मिरी आस्तीं से निकलेगा !
इसी गली में वो भूखा फ़क़ीर रहता था,
तलाश कीजे ख़ज़ाना यहीं से निकलेगा !
बुज़ुर्ग कहते थे इक वक़्त आएगा जिस दिन,
जहाँ पे डूबेगा सूरज वहीं से निकलेगा !
गुज़िश्ता साल के ज़ख़्मों हरे-भरे रहना,
जुलूस अब के बरस भी यहीं से निकलेगा
na ham-safar na kisi ham-nashin se niklega
hamare panw ka kanTa hamin se niklega
main jaanta tha ki zahrila sanp ban ban kar
tera KHulus meri aastin se niklega
isi gali mein wo bhuka faqir rahta tha
talash kije KHazana yahin se niklega
buzurg kahte the ek waqt aaega jis din
jahan pe Dubega suraj wahin se niklega
guzishta sal ke zaKHmo hare-bhare rahna
julus ab ke baras bhi yahin se niklega
घर से ये सोच के निकला हूँ कि मर जाना है
अब कोई राह दिखा दे कि किधर जाना है
जिस्म से साथ निभाने की मत उम्मीद रखो
इस मुसाफ़िर को तो रस्ते में ठहर जाना है
मौत लम्हे की सदा ज़िंदगी उम्रों की पुकार
मैं यही सोच के ज़िंदा हूँ कि मर जाना है
नश्शा ऐसा था कि मय-ख़ाने को दुनिया समझा
होश आया तो ख़याल आया कि घर जाना है
मिरे जज़्बे की बड़ी क़द्र है लोगों में मगर
मेरे जज़्बे को मिरे साथ ही मर जाना है
अजनबी ख़्वाहिशें , सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे , कि उड़ा भी न सकूँ
आँख में पानी रखो , होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो , तरकीबें बहुत सारी रखो
रोज़ तारों को नुमाइश में , खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं , अंधेरे में निकल पड़ता हैं
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं
आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें
गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं
में आ गया हु बता इंतज़ाम क्या क्या हैं
फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं
ये केचियाँ हमें उड़ने से खाक रोकेंगी
की हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं
हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं
जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं
नए सफ़र का नया इंतज़ाम कह देंगे
हवा को धुप, चरागों को शाम कह देंगे
किसी से हाथ भी छुप कर मिलाइए
वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे
जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे
भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए
सरहदों पर तनाव हे क्या
ज़रा पता तो करो चुनाव हैं क्या
शहरों में तो बारूदो का मौसम हैं
गाँव चलों अमरूदो का मौसम हैं
काम सब गेरज़रुरी हैं, जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते हैं, गजब करते हैं
आप की नज़रों मैं, सूरज की हैं जितनी अजमत
हम चरागों का भी, उतना ही अदब करते हैं
ये सहारा जो न हो तो परेशां हो जाए
मुश्किलें जान ही लेले अगर आसान हो जाए
ये कुछ लोग फरिस्तों से बने फिरते हैं
मेरे हत्थे कभी चढ़ जाये तो इन्सां हो जाए
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
लवे दीयों की हवा में उछालते रहना
गुलो के रंग पे तेजाब डालते रहना
में नूर बन के ज़माने में फ़ैल जाऊँगा
तुम आफताब में कीड़े निकालते रहना
जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे
सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान रहे
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे
तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो
फूलो की दुकाने खोलो, खुशबु का व्यापर करो
इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
जा के कोई कह दे, शोलों से चिंगारी से
फूल इस बार खिले हैं बड़ी तैयारी से
बादशाहों से भी फेके हुए सिक्के ना लिए
हमने खैरात भी मांगी है तो खुद्दारी से
बन के इक हादसा बाज़ार में आ जाएगा
जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा
चोर उचक्कों की करो कद्र, की मालूम नहीं
कौन, कब, कौन सी सरकार में आ जाएगा
नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं
जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते
सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं
मोड़ होता हैं जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यही आके फिसलते क्यों हैं
साँसों की सीडियों से उतर आई जिंदगी
बुझते हुए दिए की तरह, जल रहे हैं हम
उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गयी
हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम
इश्क में पीट के आने के लिए काफी हूँ
मैं निहत्था ही ज़माने के लिए काफी हूँ
हर हकीकत को मेरी, खाक समझने वाले
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ
एक अख़बार हूँ, औकात ही क्या मेरी
मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ
दिलों में आग, लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चहेरों पर, दोहरी नकाब रखते हैं
हमें चराग समझ कर भुझा ना पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं
मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे
मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ
यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ
राज़ जो कुछ हो इशारों में बता देना
हाथ जब उससे मिलाओ दबा भी देना
नशा वेसे तो बुरी शे है, मगर
“राहत” से सुननी हो तो थोड़ी सी पिला भी देना
इन्तेज़ामात नए सिरे से संभाले जाएँ
जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाएँ
मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं लेकिन
जब मज़ा हैं, तेरे आँगन में उजाला जाएँ
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
में बच भी जाता तो मरने वाला था
मेरा नसीब मेरे हाथ कट गए
वरना में तेरी मांग में सिन्दूर भरने वाला था
इस से पहले की हवा शोर मचाने लग जाए
मेरे “अल्लाह” मेरी ख़ाक ठिकाने लग जाए
घेरे रहते हैं खाली ख्वाब मेरी आँखों को
काश कुछ देर मुझे नींद भी आने लग जाए
साल भर ईद का रास्ता नहीं देखा जाता
वो गले मुझ से किसी और बहाने लग जाए
दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राय ली जाए
बोतलें खोल के तो पि बरसों
आज दिल खोल के पि जाए
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए
यही ईमान लिखते हैं, यही ईमान पढ़ते हैं
हमें कुछ और मत पढवाओ, हम कुरान पढ़ते हैं
यहीं के सारे मंजर हैं, यहीं के सारे मौसम हैं
वो अंधे हैं, जो इन आँखों में पाकिस्तान पढ़ते हैं
चलते फिरते हुए मेहताब दिखाएँगे तुम्हे
हमसे मिलना कभी पंजाब दिखाएँगे तुम्हे
इस दुनिया ने मेरी वफ़ा का कितना ऊँचा मोल दिया
बातों के तेजाब में, मेरे मन का अमृत घोल दिया
जब भी कोई इनाम मिला हैं, मेरा नाम तक भूल गए
जब भी कोई इलज़ाम लगा हैं, मुझ पर लाकर ढोल दिया
कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया
अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया
मौसमो का ख़याल रखा करो
कुछ लहू मैं उबाल रखा करो
लाख सूरज से दोस्ताना हो
चंद जुगनू भी पाल रखा करो
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें
जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं
जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे
भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए
जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
मेरे हुजरे में नहीं, और कंही पर रख दो,
आसमां लाए हो, ले आओ, ज़मीन पर रख दो
अरे यार कहां ढूंढने जाओगे हमारे कातिल
आप तो कत्ल का इल्ज़ाम हमी पर रख दो
mere hujare mein nahin, aur kanhee par rakh do,
aasamaan lae ho, le aao, zameen par rakh do
are yaar kahaan dhoondhane jaoge hamaare kaatil
aap to katl ka ilzaam hamee par rakh do
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
toofaanon se aankh milao, sailaabon par vaar karo
mallaahon ka chakkar chhodo, tair ke dariya paar karo
उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं
us aadamee ko bas ik dhun savaar rahatee hai
bahut haseen hai duniya ise kharaab karoon
तूफ़ानों से आंख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाह का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
फूलों की दुकानें खोलो, ख़ुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
toofaanon se aankh milao, sailaabon pe vaar karo
mallaah ka chakkar chhodo, tair ke dariya paar karo
phoolon kee dukaanen kholo, khushaboo ka vyaapaar karo
ishq khata hai, to ye khata ek baar nahin, sau baar karo
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं
जो ये दीवार का सुराख है साज़िश है लोगों की,
मगर हम इसको अपने घर का रोशनदान कहते हैं
ham apanee jaan ke dushman ko apanee jaan kahate hai
mohabbat kee isee mittee ko hindustaan kahate hain
jo ye deevaar ka suraakh hai saazish hai logon kee,
magar ham isako apane ghar ka roshanadaan kahate hain
कल तक दर दर फिरने वाले,
घर के अंदर बैठे हैं और
बेचारे घर के मालिक, दरवाजे पर बैठे हैं,
खुल जा सिम सिम, याद है किसको,
कौन कहे और कौन सुने?
गूंगे बाहर सीख रहे हैं, बहरे अंदर बैठे हैं
kal tak dar dar phirane vaale,
ghar ke andar baithe hain aur
bechaare ghar ke maalik, daravaaje par baithe hain,
khul ja sim sim, yaad hai kisako,
kaun kahe aur kaun sune?
goonge baahar seekh rahe hain, bahare andar baithe hain
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें।
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए,
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए।
sooraj, sitaare, chaand mere saath mein rahen,
jab tak tumhaare haath mere haath mein rahen.
jaagane kee bhee, jagaane kee bhee, aadat ho jae,
kaash tujhako kisee shaayar se mohabbat ho jae.
Rahat Indori Ghazal
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ले तो आए शाइरी बाज़ार में ‘राहत’ मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो
aankh mein pani rakho honTon pe chingari rakho
zinda rahna hai to tarkiben bahut sari rakho
rah ke patthar se baDh kar kuchh nahin hain manzilen
raste aawaz dete hain safar jari rakho
ek hi naddi ke hain ye do kinare dosto
dostana zindagi se maut se yari rakho
aate jate pal ye kahte hain hamare kan mein
kuch ka ailan hone ko hai tayyari rakho
ye zaruri hai ki aankhon ka bharam qaem rahe
nind rakho ya na rakho KHwab meyari rakho
ye hawaen uD na jaen le ke kaghaz ka badan
dosto mujh par koi patthar zara bhaari rakho
le to aae shairi bazar mein ‘rahat’ miyan
kya zaruri hai ki lahje ko bhi bazari rakho
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है
अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब
रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
roz taron ko numaish mein KHalal paDta hai
chand pagal hai andhere mein nikal paDta hai
ek diwana musafir hai meri aankhon mein
waqt-be-waqt Thahar jata hai chal paDta hai
apni tabir ke chakkar mein mera jagta KHwab
roz suraj ki tarah ghar se nikal paDta hai
roz patthar ki himayat mein ghazal likhte hain
roz shishon se koi kaam nikal paDta hai
us ki yaad aai hai sanso zara aahista chalo
dhaDkanon se bhi ibaadat mein KHalal paDta hai
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे
मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का
इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूँगा उसे
बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदन
उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे
पसीने बाँटता फिरता है हर तरफ़ सूरज
कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूँगा उसे
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
kahin akele mein mil kar jhinjhoD dunga use
jahan jahan se wo TuTa hai joD dunga use
mujhe wo chhoD gaya ye kamal hai us ka
irada main ne kiya tha ki chhoD dunga use
badan chura ke wo chalta hai mujh se shisha-badan
use ye Dar hai ki main toD phoD dunga use
pasine banTta phirta hai har taraf suraj
kabhi jo hath laga to nichoD dunga use
maza chakha ke hi mana hun main bhi duniya ko
samajh rahi thi ki aise hi chhoD dunga use
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा कर के
आते जाते हैं कई रंग मिरे चेहरे पर
लोग लेते हैं मज़ा ज़िक्र तुम्हारा कर के
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के
आसमानों की तरफ़ फेंक दिया है मैं ने
चंद मिट्टी के चराग़ों को सितारा कर के
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भँवर है जिस की
तुम ने अच्छा ही किया मुझ से किनारा कर के
मुंतज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पुर बुला लूँगा इशारा कर के
teri har baat mohabbat mein gawara kar ke
dil ke bazar mein baiThe hain KHasara kar ke
aate jate hain kai rang mere chehre par
log lete hain maza zikr tumhaara kar ke
ek chingari nazar aai thi basti mein use
wo alag haT gaya aandhi ko ishaara kar ke
aasmanon ki taraf phenk diya hai main ne
chand miTTi ke charaghon ko sitara kar ke
main wo dariya hun ki har bund bhanwar hai jis ki
tum ne achchha hi kiya mujh se kinara kar ke
muntazir hun ki sitaron ki zara aankh lage
chand ko chhat pur bula lunga ishaara kar ke
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए
दिल भी किसी फ़क़ीर के हुजरे से कम नहीं
दुनिया यहीं पे ला के छुपा देनी चाहिए
मैं ख़ुद भी करना चाहता हूँ अपना सामना
तुझ को भी अब नक़ाब उठा देनी चाहिए
मैं फूल हूँ तो फूल को गुल-दान हो नसीब
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए
मैं ताज हूँ तो ताज को सर पर सजाएँ लोग
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए
मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद हो
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए
मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाइए मुझे
मैं नींद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए
सच बात कौन है जो सर-ए-आम कह सके
मैं कह रहा हूँ मुझ को सज़ा देनी चाहिए
bimar ko maraz ki dawa deni chahiye
main pina chahta hun pila deni chahiye
allah barkaton se nawazega ishq mein
hai jitni punji pas laga deni chahiye
dil bhi kisi faqir ke hujre se kam nahin
duniya yahin pe la ke chhupa deni chahiye
main KHud bhi karna chahta hun apna samna
tujh ko bhi ab naqab uTha deni chahiye
main phul hun to phul ko gul-dan ho nasib
main aag hun to aag bujha deni chahiye
main taj hun to taj ko sar par sajaen log
main KHak hun to KHak uDa deni chahiye
main jabr hun to jabr ki taid band ho
main sabr hun to mujh ko dua deni chahiye
main KHwab hun to KHwab se chaunkaiye mujhe
main nind hun to nind uDa deni chahiye
sach baat kaun hai jo sar-e-am kah sake
main kah raha hun mujh ko saza deni chahiye
हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए
अब जो बाज़ार में रखे हो तो हैरत क्या है
जो भी देखेगा वो पूछेगा की कीमत क्या है
एक ही बर्थ पे दो साये सफर करते रहे
मैंने कल रात यह जाना है कि जन्नत क्या है
आग के पास कभी मोम को लाकर देखूं
हो इज़ाज़त तो तुझे हाथ लगाकर देखूं
दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगाकर देखूं
Thanks for read
मेरे हुजरे में नहीं, और कंही पर रख दो,
आसमां लाए हो, ले आओ, ज़मीन पर रख दो
अरे यार कहां ढूंढने जाओगे हमारे कातिल
आप तो कत्ल का इल्ज़ाम हमी पर रख दो
mere hujare mein nahin, aur kanhee par rakh do,
aasamaan lae ho, le aao, zameen par rakh do
are yaar kahaan dhoondhane jaoge hamaare kaatil
aap to katl ka ilzaam hamee par rakh do
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
toofaanon se aankh milao, sailaabon par vaar karo
mallaahon ka chakkar chhodo, tair ke dariya paar karo
उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं
us aadamee ko bas ik dhun savaar rahatee hai
bahut haseen hai duniya ise kharaab karoon
तूफ़ानों से आंख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाह का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
फूलों की दुकानें खोलो, ख़ुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
toofaanon se aankh milao, sailaabon pe vaar karo
mallaah ka chakkar chhodo, tair ke dariya paar karo
phoolon kee dukaanen kholo, khushaboo ka vyaapaar karo
ishq khata hai, to ye khata ek baar nahin, sau baar karo
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं
जो ये दीवार का सुराख है साज़िश है लोगों की,
मगर हम इसको अपने घर का रोशनदान कहते हैं
ham apanee jaan ke dushman ko apanee jaan kahate hai
mohabbat kee isee mittee ko hindustaan kahate hain
jo ye deevaar ka suraakh hai saazish hai logon kee,
magar ham isako apane ghar ka roshanadaan kahate hain
कल तक दर दर फिरने वाले,
घर के अंदर बैठे हैं और
बेचारे घर के मालिक, दरवाजे पर बैठे हैं,
खुल जा सिम सिम, याद है किसको,
कौन कहे और कौन सुने?
गूंगे बाहर सीख रहे हैं, बहरे अंदर बैठे हैं
kal tak dar dar phirane vaale,
ghar ke andar baithe hain aur
bechaare ghar ke maalik, daravaaje par baithe hain,
khul ja sim sim, yaad hai kisako,
kaun kahe aur kaun sune?
goonge baahar seekh rahe hain, bahare andar baithe hain
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें।
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए,
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए।
sooraj, sitaare, chaand mere saath mein rahen,
jab tak tumhaare haath mere haath mein rahen.
jaagane kee bhee, jagaane kee bhee, aadat ho jae,
kaash tujhako kisee shaayar se mohabbat ho jae.
Rahat Indori Ghazal
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ले तो आए शाइरी बाज़ार में ‘राहत’ मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो
aankh mein pani rakho honTon pe chingari rakho
zinda rahna hai to tarkiben bahut sari rakho
rah ke patthar se baDh kar kuchh nahin hain manzilen
raste aawaz dete hain safar jari rakho
ek hi naddi ke hain ye do kinare dosto
dostana zindagi se maut se yari rakho
aate jate pal ye kahte hain hamare kan mein
kuch ka ailan hone ko hai tayyari rakho
ye zaruri hai ki aankhon ka bharam qaem rahe
nind rakho ya na rakho KHwab meyari rakho
ye hawaen uD na jaen le ke kaghaz ka badan
dosto mujh par koi patthar zara bhaari rakho
le to aae shairi bazar mein ‘rahat’ miyan
kya zaruri hai ki lahje ko bhi bazari rakho
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है
अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब
रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
roz taron ko numaish mein KHalal paDta hai
chand pagal hai andhere mein nikal paDta hai
ek diwana musafir hai meri aankhon mein
waqt-be-waqt Thahar jata hai chal paDta hai
apni tabir ke chakkar mein mera jagta KHwab
roz suraj ki tarah ghar se nikal paDta hai
roz patthar ki himayat mein ghazal likhte hain
roz shishon se koi kaam nikal paDta hai
us ki yaad aai hai sanso zara aahista chalo
dhaDkanon se bhi ibaadat mein KHalal paDta hai
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे
मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का
इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूँगा उसे
बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदन
उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे
पसीने बाँटता फिरता है हर तरफ़ सूरज
कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूँगा उसे
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
kahin akele mein mil kar jhinjhoD dunga use
jahan jahan se wo TuTa hai joD dunga use
mujhe wo chhoD gaya ye kamal hai us ka
irada main ne kiya tha ki chhoD dunga use
badan chura ke wo chalta hai mujh se shisha-badan
use ye Dar hai ki main toD phoD dunga use
pasine banTta phirta hai har taraf suraj
kabhi jo hath laga to nichoD dunga use
maza chakha ke hi mana hun main bhi duniya ko
samajh rahi thi ki aise hi chhoD dunga use
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा कर के
आते जाते हैं कई रंग मिरे चेहरे पर
लोग लेते हैं मज़ा ज़िक्र तुम्हारा कर के
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के
आसमानों की तरफ़ फेंक दिया है मैं ने
चंद मिट्टी के चराग़ों को सितारा कर के
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भँवर है जिस की
तुम ने अच्छा ही किया मुझ से किनारा कर के
मुंतज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पुर बुला लूँगा इशारा कर के
teri har baat mohabbat mein gawara kar ke
dil ke bazar mein baiThe hain KHasara kar ke
aate jate hain kai rang mere chehre par
log lete hain maza zikr tumhaara kar ke
ek chingari nazar aai thi basti mein use
wo alag haT gaya aandhi ko ishaara kar ke
aasmanon ki taraf phenk diya hai main ne
chand miTTi ke charaghon ko sitara kar ke
main wo dariya hun ki har bund bhanwar hai jis ki
tum ne achchha hi kiya mujh se kinara kar ke
muntazir hun ki sitaron ki zara aankh lage
chand ko chhat pur bula lunga ishaara kar ke
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए
दिल भी किसी फ़क़ीर के हुजरे से कम नहीं
दुनिया यहीं पे ला के छुपा देनी चाहिए
मैं ख़ुद भी करना चाहता हूँ अपना सामना
तुझ को भी अब नक़ाब उठा देनी चाहिए
मैं फूल हूँ तो फूल को गुल-दान हो नसीब
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए
मैं ताज हूँ तो ताज को सर पर सजाएँ लोग
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए
मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद हो
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए
मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाइए मुझे
मैं नींद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए
सच बात कौन है जो सर-ए-आम कह सके
मैं कह रहा हूँ मुझ को सज़ा देनी चाहिए
bimar ko maraz ki dawa deni chahiye
main pina chahta hun pila deni chahiye
allah barkaton se nawazega ishq mein
hai jitni punji pas laga deni chahiye
dil bhi kisi faqir ke hujre se kam nahin
duniya yahin pe la ke chhupa deni chahiye
main KHud bhi karna chahta hun apna samna
tujh ko bhi ab naqab uTha deni chahiye
main phul hun to phul ko gul-dan ho nasib
main aag hun to aag bujha deni chahiye
main taj hun to taj ko sar par sajaen log
main KHak hun to KHak uDa deni chahiye
main jabr hun to jabr ki taid band ho
main sabr hun to mujh ko dua deni chahiye
main KHwab hun to KHwab se chaunkaiye mujhe
main nind hun to nind uDa deni chahiye
sach baat kaun hai jo sar-e-am kah sake
main kah raha hun mujh ko saza deni chahiye
हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
मेरे हुजरे में नहीं, और कंही पर रख दो,
आसमां लाए हो, ले आओ, ज़मीन पर रख दो
अरे यार कहां ढूंढने जाओगे हमारे कातिल
आप तो कत्ल का इल्ज़ाम हमी पर रख दो
mere hujare mein nahin, aur kanhee par rakh do,
aasamaan lae ho, le aao, zameen par rakh do
are yaar kahaan dhoondhane jaoge hamaare kaatil
aap to katl ka ilzaam hamee par rakh do
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
toofaanon se aankh milao, sailaabon par vaar karo
mallaahon ka chakkar chhodo, tair ke dariya paar karo
उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं
us aadamee ko bas ik dhun savaar rahatee hai
bahut haseen hai duniya ise kharaab karoon
तूफ़ानों से आंख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाह का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
फूलों की दुकानें खोलो, ख़ुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
toofaanon se aankh milao, sailaabon pe vaar karo
mallaah ka chakkar chhodo, tair ke dariya paar karo
phoolon kee dukaanen kholo, khushaboo ka vyaapaar karo
ishq khata hai, to ye khata ek baar nahin, sau baar karo
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं
जो ये दीवार का सुराख है साज़िश है लोगों की,
मगर हम इसको अपने घर का रोशनदान कहते हैं
ham apanee jaan ke dushman ko apanee jaan kahate hai
mohabbat kee isee mittee ko hindustaan kahate hain
jo ye deevaar ka suraakh hai saazish hai logon kee,
magar ham isako apane ghar ka roshanadaan kahate hain
कल तक दर दर फिरने वाले,
घर के अंदर बैठे हैं और
बेचारे घर के मालिक, दरवाजे पर बैठे हैं,
खुल जा सिम सिम, याद है किसको,
कौन कहे और कौन सुने?
गूंगे बाहर सीख रहे हैं, बहरे अंदर बैठे हैं
kal tak dar dar phirane vaale,
ghar ke andar baithe hain aur
bechaare ghar ke maalik, daravaaje par baithe hain,
khul ja sim sim, yaad hai kisako,
kaun kahe aur kaun sune?
goonge baahar seekh rahe hain, bahare andar baithe hain
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें।
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए,
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए।
sooraj, sitaare, chaand mere saath mein rahen,
jab tak tumhaare haath mere haath mein rahen.
jaagane kee bhee, jagaane kee bhee, aadat ho jae,
kaash tujhako kisee shaayar se mohabbat ho jae.
Rahat Indori Ghazal
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ले तो आए शाइरी बाज़ार में ‘राहत’ मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो
aankh mein pani rakho honTon pe chingari rakho
zinda rahna hai to tarkiben bahut sari rakho
rah ke patthar se baDh kar kuchh nahin hain manzilen
raste aawaz dete hain safar jari rakho
ek hi naddi ke hain ye do kinare dosto
dostana zindagi se maut se yari rakho
aate jate pal ye kahte hain hamare kan mein
kuch ka ailan hone ko hai tayyari rakho
ye zaruri hai ki aankhon ka bharam qaem rahe
nind rakho ya na rakho KHwab meyari rakho
ye hawaen uD na jaen le ke kaghaz ka badan
dosto mujh par koi patthar zara bhaari rakho
le to aae shairi bazar mein ‘rahat’ miyan
kya zaruri hai ki lahje ko bhi bazari rakho
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है
अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब
रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
roz taron ko numaish mein KHalal paDta hai
chand pagal hai andhere mein nikal paDta hai
ek diwana musafir hai meri aankhon mein
waqt-be-waqt Thahar jata hai chal paDta hai
apni tabir ke chakkar mein mera jagta KHwab
roz suraj ki tarah ghar se nikal paDta hai
roz patthar ki himayat mein ghazal likhte hain
roz shishon se koi kaam nikal paDta hai
us ki yaad aai hai sanso zara aahista chalo
dhaDkanon se bhi ibaadat mein KHalal paDta hai
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे
मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का
इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूँगा उसे
बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदन
उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे
पसीने बाँटता फिरता है हर तरफ़ सूरज
कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूँगा उसे
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
kahin akele mein mil kar jhinjhoD dunga use
jahan jahan se wo TuTa hai joD dunga use
mujhe wo chhoD gaya ye kamal hai us ka
irada main ne kiya tha ki chhoD dunga use
badan chura ke wo chalta hai mujh se shisha-badan
use ye Dar hai ki main toD phoD dunga use
pasine banTta phirta hai har taraf suraj
kabhi jo hath laga to nichoD dunga use
maza chakha ke hi mana hun main bhi duniya ko
samajh rahi thi ki aise hi chhoD dunga use
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा कर के
आते जाते हैं कई रंग मिरे चेहरे पर
लोग लेते हैं मज़ा ज़िक्र तुम्हारा कर के
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के
आसमानों की तरफ़ फेंक दिया है मैं ने
चंद मिट्टी के चराग़ों को सितारा कर के
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भँवर है जिस की
तुम ने अच्छा ही किया मुझ से किनारा कर के
मुंतज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पुर बुला लूँगा इशारा कर के
teri har baat mohabbat mein gawara kar ke
dil ke bazar mein baiThe hain KHasara kar ke
aate jate hain kai rang mere chehre par
log lete hain maza zikr tumhaara kar ke
ek chingari nazar aai thi basti mein use
wo alag haT gaya aandhi ko ishaara kar ke
aasmanon ki taraf phenk diya hai main ne
chand miTTi ke charaghon ko sitara kar ke
main wo dariya hun ki har bund bhanwar hai jis ki
tum ne achchha hi kiya mujh se kinara kar ke
muntazir hun ki sitaron ki zara aankh lage
chand ko chhat pur bula lunga ishaara kar ke
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए
दिल भी किसी फ़क़ीर के हुजरे से कम नहीं
दुनिया यहीं पे ला के छुपा देनी चाहिए
मैं ख़ुद भी करना चाहता हूँ अपना सामना
तुझ को भी अब नक़ाब उठा देनी चाहिए
मैं फूल हूँ तो फूल को गुल-दान हो नसीब
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए
मैं ताज हूँ तो ताज को सर पर सजाएँ लोग
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए
मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद हो
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए
मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाइए मुझे
मैं नींद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए
सच बात कौन है जो सर-ए-आम कह सके
मैं कह रहा हूँ मुझ को सज़ा देनी चाहिए
bimar ko maraz ki dawa deni chahiye
main pina chahta hun pila deni chahiye
allah barkaton se nawazega ishq mein
hai jitni punji pas laga deni chahiye
dil bhi kisi faqir ke hujre se kam nahin
duniya yahin pe la ke chhupa deni chahiye
main KHud bhi karna chahta hun apna samna
tujh ko bhi ab naqab uTha deni chahiye
main phul hun to phul ko gul-dan ho nasib
main aag hun to aag bujha deni chahiye
main taj hun to taj ko sar par sajaen log
main KHak hun to KHak uDa deni chahiye
main jabr hun to jabr ki taid band ho
main sabr hun to mujh ko dua deni chahiye
main KHwab hun to KHwab se chaunkaiye mujhe
main nind hun to nind uDa deni chahiye
sach baat kaun hai jo sar-e-am kah sake
main kah raha hun mujh ko saza deni chahiye
हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
मेरे हुजरे में नहीं, और कंही पर रख दो,
आसमां लाए हो, ले आओ, ज़मीन पर रख दो
अरे यार कहां ढूंढने जाओगे हमारे कातिल
आप तो कत्ल का इल्ज़ाम हमी पर रख दो
mere hujare mein nahin, aur kanhee par rakh do,
aasamaan lae ho, le aao, zameen par rakh do
are yaar kahaan dhoondhane jaoge hamaare kaatil
aap to katl ka ilzaam hamee par rakh do
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
toofaanon se aankh milao, sailaabon par vaar karo
mallaahon ka chakkar chhodo, tair ke dariya paar karo
उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं
us aadamee ko bas ik dhun savaar rahatee hai
bahut haseen hai duniya ise kharaab karoon
तूफ़ानों से आंख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाह का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
फूलों की दुकानें खोलो, ख़ुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
toofaanon se aankh milao, sailaabon pe vaar karo
mallaah ka chakkar chhodo, tair ke dariya paar karo
phoolon kee dukaanen kholo, khushaboo ka vyaapaar karo
ishq khata hai, to ye khata ek baar nahin, sau baar karo
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं
जो ये दीवार का सुराख है साज़िश है लोगों की,
मगर हम इसको अपने घर का रोशनदान कहते हैं
ham apanee jaan ke dushman ko apanee jaan kahate hai
mohabbat kee isee mittee ko hindustaan kahate hain
jo ye deevaar ka suraakh hai saazish hai logon kee,
magar ham isako apane ghar ka roshanadaan kahate hain
कल तक दर दर फिरने वाले,
घर के अंदर बैठे हैं और
बेचारे घर के मालिक, दरवाजे पर बैठे हैं,
खुल जा सिम सिम, याद है किसको,
कौन कहे और कौन सुने?
गूंगे बाहर सीख रहे हैं, बहरे अंदर बैठे हैं
kal tak dar dar phirane vaale,
ghar ke andar baithe hain aur
bechaare ghar ke maalik, daravaaje par baithe hain,
khul ja sim sim, yaad hai kisako,
kaun kahe aur kaun sune?
goonge baahar seekh rahe hain, bahare andar baithe hain
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें।
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए,
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए।
sooraj, sitaare, chaand mere saath mein rahen,
jab tak tumhaare haath mere haath mein rahen.
jaagane kee bhee, jagaane kee bhee, aadat ho jae,
kaash tujhako kisee shaayar se mohabbat ho jae.
Rahat Indori Ghazal
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ले तो आए शाइरी बाज़ार में ‘राहत’ मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो
aankh mein pani rakho honTon pe chingari rakho
zinda rahna hai to tarkiben bahut sari rakho
rah ke patthar se baDh kar kuchh nahin hain manzilen
raste aawaz dete hain safar jari rakho
ek hi naddi ke hain ye do kinare dosto
dostana zindagi se maut se yari rakho
aate jate pal ye kahte hain hamare kan mein
kuch ka ailan hone ko hai tayyari rakho
ye zaruri hai ki aankhon ka bharam qaem rahe
nind rakho ya na rakho KHwab meyari rakho
ye hawaen uD na jaen le ke kaghaz ka badan
dosto mujh par koi patthar zara bhaari rakho
le to aae shairi bazar mein ‘rahat’ miyan
kya zaruri hai ki lahje ko bhi bazari rakho
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है
अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब
रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
roz taron ko numaish mein KHalal paDta hai
chand pagal hai andhere mein nikal paDta hai
ek diwana musafir hai meri aankhon mein
waqt-be-waqt Thahar jata hai chal paDta hai
apni tabir ke chakkar mein mera jagta KHwab
roz suraj ki tarah ghar se nikal paDta hai
roz patthar ki himayat mein ghazal likhte hain
roz shishon se koi kaam nikal paDta hai
us ki yaad aai hai sanso zara aahista chalo
dhaDkanon se bhi ibaadat mein KHalal paDta hai
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे
मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का
इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूँगा उसे
बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदन
उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे
पसीने बाँटता फिरता है हर तरफ़ सूरज
कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूँगा उसे
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
kahin akele mein mil kar jhinjhoD dunga use
jahan jahan se wo TuTa hai joD dunga use
mujhe wo chhoD gaya ye kamal hai us ka
irada main ne kiya tha ki chhoD dunga use
badan chura ke wo chalta hai mujh se shisha-badan
use ye Dar hai ki main toD phoD dunga use
pasine banTta phirta hai har taraf suraj
kabhi jo hath laga to nichoD dunga use
maza chakha ke hi mana hun main bhi duniya ko
samajh rahi thi ki aise hi chhoD dunga use
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा कर के
आते जाते हैं कई रंग मिरे चेहरे पर
लोग लेते हैं मज़ा ज़िक्र तुम्हारा कर के
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के
आसमानों की तरफ़ फेंक दिया है मैं ने
चंद मिट्टी के चराग़ों को सितारा कर के
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भँवर है जिस की
तुम ने अच्छा ही किया मुझ से किनारा कर के
मुंतज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पुर बुला लूँगा इशारा कर के
teri har baat mohabbat mein gawara kar ke
dil ke bazar mein baiThe hain KHasara kar ke
aate jate hain kai rang mere chehre par
log lete hain maza zikr tumhaara kar ke
ek chingari nazar aai thi basti mein use
wo alag haT gaya aandhi ko ishaara kar ke
aasmanon ki taraf phenk diya hai main ne
chand miTTi ke charaghon ko sitara kar ke
main wo dariya hun ki har bund bhanwar hai jis ki
tum ne achchha hi kiya mujh se kinara kar ke
muntazir hun ki sitaron ki zara aankh lage
chand ko chhat pur bula lunga ishaara kar ke
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए
दिल भी किसी फ़क़ीर के हुजरे से कम नहीं
दुनिया यहीं पे ला के छुपा देनी चाहिए
मैं ख़ुद भी करना चाहता हूँ अपना सामना
तुझ को भी अब नक़ाब उठा देनी चाहिए
मैं फूल हूँ तो फूल को गुल-दान हो नसीब
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए
मैं ताज हूँ तो ताज को सर पर सजाएँ लोग
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए
मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद हो
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए
मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाइए मुझे
मैं नींद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए
सच बात कौन है जो सर-ए-आम कह सके
मैं कह रहा हूँ मुझ को सज़ा देनी चाहिए
bimar ko maraz ki dawa deni chahiye
main pina chahta hun pila deni chahiye
allah barkaton se nawazega ishq mein
hai jitni punji pas laga deni chahiye
dil bhi kisi faqir ke hujre se kam nahin
duniya yahin pe la ke chhupa deni chahiye
main KHud bhi karna chahta hun apna samna
tujh ko bhi ab naqab uTha deni chahiye
main phul hun to phul ko gul-dan ho nasib
main aag hun to aag bujha deni chahiye
main taj hun to taj ko sar par sajaen log
main KHak hun to KHak uDa deni chahiye
main jabr hun to jabr ki taid band ho
main sabr hun to mujh ko dua deni chahiye
main KHwab hun to KHwab se chaunkaiye mujhe
main nind hun to nind uDa deni chahiye
sach baat kaun hai jo sar-e-am kah sake
main kah raha hun mujh ko saza deni chahiye
हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
Thanks for read Rahat Indori Shayari in Hindi with Image other shayari
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Originally posted 2021-10-26 23:28:12.