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Topics Covered
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Mirza Ghalib Shayari
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।
वर्ना हम भी आदमी थे काम के।।
ishq ne gaalib nikamma kar diya.
varna ham bhee aadamee the kaam ke..
तेरे वादे पर जिये हम
तो यह जान,झूठ जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते
अगर एतबार होता ..
Tere vaade par jiye ham
to yah jaan,jhooth jaana
ki khushee se mar na jaate
agar etabaar hota ..
गुज़र रहा हू यहाँ से भी गुज़र जाउँगा..
मै वक़्त हू कहीं ठहरा तो मर जाउँगा !!!
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते है की बीमार का हाल अच्छा है
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का।
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।
तुम न आओगे तो मरने की हैं सौ तदबीरें,
मौत कुछ तुम तो नहीं है कि बुला भी न सकूं।
ये भी जरूर पढ़ें
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में।
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते।
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’।
शर्म तुम को मगर नहीं आती।।
ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए
मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब
यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी
खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है
मैं वह कतरा हूं समंदर मेरे घर आता है
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
दर्द देकर सवाल करते हो।
तुम भी ग़ालिब कमाल करते हो।।
देखकर पूछ लिया हाल मेरा।
चलो कुछ तो ख़याल करते हो
तुम अपने शिकवे की बातें
न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से
कि उस में आग दबी है..
Tum apane shikave kee baaten
na khod khod ke poochho
hazar karo mire dil se
ki us mein aag dabee hai..
तू ने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’
तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है..!
Tune kasam may-kashee kee khaee hai ‘gaalib’
teree kasam ka kuchh etibaar nahee hai..!
मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले..!
Mohabbat mein nahee phark jeene aur marane ka
Usee ko dekhakar jeete hai jis ‘kaafir’ pe dam nikale..!
मगर लिखवाए कोई उस को खत
तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और
घरसे कान पर रख कर कलम निकले..
Magar likhavae koee us ko khat
To haum se likhavae
Huee subh aur
Gharase kaan par rakh kar kalam nikale..
मरते है आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नही आती,
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुमको मगर नही आती ।
Marate hai aarazoo mein marane kee
Maut aatee hai par nahee aatee,
Kaaba kis munh se jaoge ‘gaalib’
Sharm tumako magar nahee aatee .
कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज
पर इतना जानते है कल वो जाता था के हम निकले..
Khaan mayakhaane ka daravaaza ‘gaalib’ aur kahaan vaij
par itana jaanate hai kal vo jaata tha ke ham nikale..
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है..
Bana kar phakeeron ka ham bhes gaalib
Tamaasha-e-ahal-e-karam dekhate hai..
mirza ghalib best shayari
तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता ।
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को,
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्म ए जिगर को देखते हैं..!!
तुम न आओगे तो मरने की हैं सौ तबदीरें,
मौत कुछ तुम तो नहीं है कि बुला भी न सकूं..!!
आईना देख के अपना सा मुँह लेके रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना गुरूर था..!!
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता..!!
आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक..!!
ग़ालिब बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे,
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे..!!
न सुनो गर बुरा कहे कोई,
न कहो गर बुरा करे कोई..!!
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है..!!
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे..!!
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना..!!
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में,
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते..!!
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है..!!
चाँदनी रात के खामोश सितारों की कसम,
दिल में अब तेरे सिवा कोई भी आबाद नहीं..!!
आता है दाग-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद,
मुझसे मेरे गुनाह का हिसाब ऐ खुदा न माँग..!!
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो,
हज़र करो मेरे दिल से कि उसमें आग दबी है..!!
तूने कसम मय-कशी की खाई है ग़ालिब,
तेरी कसम का कुछ एतबार नही है..!!
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ,
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ..!!
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक..!!
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि,
हां रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन..!
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले..!!
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले..!!
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और..!!
मशरूफ रहने का अंदाज़ तुम्हें तनहा ना कर दे ग़ालिब
रिश्ते फुर्सत के नहीं तवज्जो के मोहताज़ होते हैं
हमको मालूम है जन्नत की हकीक़त लेकिन
दिल को खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है
मौत पे भी मुझे यकीन है
तुम पर भी ऐतबार है
देखना है पहले कौन आता है
हमें दोनों का इंतज़ार है
जिसे “मैं “की हवा लगी
उसे फिर न दवा लगी न दूआ लगी
हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो
हमारा शहर तो बस यूँ ही रास्ते में आया था
इसलिए कम करते हैं ज़िक्र तुम्हारा
कहीं तुम ख़ास से आम ना हो जाओ
उम्र भर ग़ालिब यही ग़लती करते रहे
धूल चेहरे पर थी हम आईना साफ करते रहे
जब लगा था तीर तब इतना दर्द नहीं हुआ था ग़ालिब
ज़ख्म का एहसास तब हुआ जब कमान देखी अपनों के हाथ में
वो उम्र भर कहते रहे तुम्हारे सीने में दिल नहीं
दिल का दौरा क्या पड़ा ये दाग भी धुल गया
मेरे पास से ग़ुजर कर मेरा हाल तक न पूछा
मैं ये कैसे मान जाऊ के वो दूर जाकर रोये
कुछ इस तरह से मैंने जिंदगी को आसान कर लिया
किसी से माफी मांग ली किसी को माफ़ कर दिया
वो आयेंगे नये वादे लेकर
तुम पुरानी शर्तों पर ही कायम रहना
मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब
यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना
कितना खौफ़ होता है रात के अंधेरे में
जाकर पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते
रहने दे मुझे इन अंधेरों में ए-ग़ालिब
कमबख्त रोशनी में अपनों के असली चेहरे सामने आ जाते हैं
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक उसने ग़ालिब
के सारी उम्र अपना कसूर ढूँढ़ते रहे
तू तो वो जालिम है जो दिल में रहकर भी मेरा न बन सका
और दिल वो काफिर जो मुझ में रहकर भी तेरा हो गया
बे-वजह नहीं रोता इश्क में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़कर चाहो वो रुलाता ज़रूर है
हम जो सबका दिल रखते हैं
सुनो, हम भी एक दिल रखते हैं
दुख देकर सवाल करते हो
तुम भी गालिब कमाल करते हो
एक मुर्दे ने क्या खूब कहा है
ये जो मेरी मौत पर रो रहें हैं
अभी उठ जाऊ तो जीने नहीं देंगे
ये चंद दिन की दुनिया है ग़ालिब
यहां पलकों पर बिठाया जाता है
नज़रो से गिराने के लिए
पीने दे शराब मस्जिद में बैठ के
या वो जगह बता जहां खुदा नहीं है
मुझे कहती है तेरे साथ रहूँगी सदा ग़ालिब
बहुत प्यार करती है मुझसे उदासी मेरी
गुजर रहा हूँ
यहाँ से भी गुजर जाउँग
मैं वक्त हूँ
कहीं ठहरा तो मर जाउँगा
बर्दाशत नहीं तुम्हें किसी और के साथ देखना
बात शक की नहीं हक की है
कहते हैं जीते हैं उम्मीद पर लोग
हमको जीने की भी उम्मीद नहीं
इस सादगी पे कौन न मर जाए खुदा
लड़ते हैं और हाथ मे तलवार भी नहीं
मज़िल मिलेगी भटक कर ही सही
गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं
आता है कौन-कौन तेरे गम को बाँटने ग़ालिब
तू अपनी मौत की अफवाह उड़ा के तो देख
ना कर इतना गौरव अपने नशे पे शराब
तुझसे भी ज्यादा नशा रखती है आँखें किसी की
बे-वजह नहीं रोता इश्क में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़कर चाहो वो रूलाता जरूर है
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
किसी की क्या मजाल थी जो कि हमें खरीद सकता
हम तो खुद ही बिक गये खरीददार देखकर
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
गैर ले महफ़िल में बोसे जाम के
हम रहें यूँ तश्ना-ऐ-लब पैगाम के
खत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के”
चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ , चंद हसीनों के खतूत
बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला
न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता
डुबोया मुझको होनी ने, न होता मैं तो क्या होता?
हाथों की लकीरों पर मत जा ए ग़ालिब,
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होता
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पर दम निकले
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए
आशिक़ हूँ पर माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम,
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मेरे आगे
इश्क पर ज़ोर नहीं है,
ये वो आतिश है गालिब कि लगाए न लगे और बुझाए न बुझे
मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब
यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है
बेखुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब’
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है
खुदा के वास्ते पर्दा न रुख्सार से उठा ज़ालिम,
कहीं ऐसा न हो यहाँ भी वही काफिर सनम निकले
तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिला के दिखा
नहीं तो दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख
मोहब्बत मैं नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते है जिस काफिर पे दम निकले
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए..!!
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब,
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते..!!
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी,
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है..!!
रोक लो गर ग़लत चले कोई,
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई..!!
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया,
वर्ना हम भी आदमी थे काम के..!!
मरते है आरज़ू में मरने की मौत आती है पर नही आती,
काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब शर्म तुमको मगर नही आती..!!
कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ग़ालिब और कहाँ वाइज
पर इतना जानते है कल वो जाता था के हम निकले..!!
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब,
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है..!!
Tere vaade par jiye ham, to yah jaan jhooth jaana,
Ki khushee se mar na jaate, agar etabaar hota .
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़।
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।।
Un ke dekhe se jo aa jaatee hai munh par raunaq.
Vo samajhate hain ki beemaar ka haal achchha hai..
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’।
शर्म तुम को मगर नहीं आती।।
kaaba kis munh se jaoge Gaalib.
sharm tum ko magar nahin aatee..
shayari by mirza ghalib
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है।
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।।
dil-e-naadaan tujhe hua kya hai.
aakhir is dard kee dava kya hai..
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’।
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे।।
ishq par jor nahin hai ye vo aatish gaalib.
ki lagaaye na lage aur bujhaaye na bujhe..
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Mirza Ghalib Shayari
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।।
Esharat-e-qatara hai dariya mein fana ho jaana.
dard ka had se guzarana hai dava ho jaana..
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई।
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई।।
Dil se teree nigaah jigar tak utar gaee.
donon ko ik ada mein razaamand kar gaee..
mirza ghalib sad shayari
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ।
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ।।
dard minnat-kash-e-dava na hua.
main na achchha hua bura na hua..
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक।
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।।
aah ko chaahie ik umr asar hote tak.
kaun jeeta hai tiree zulf ke sar hote tak..
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां।
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन।।
Qarz kee peete the may lekin samajhate the ki haan.
Rang laavegee hamaaree faaqa-mastee ek din..
Thank for read Top 60 Mirza Ghalib Shayari in Hindi with Image
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Originally posted 2021-11-02 23:33:33.